पारंपरिक लोक संस्कृति के रक्षक है रूप सिंह ठाकुर

पारंपरिक लोक संस्कृति के रक्षक है रूप सिंह ठाकुर
-सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण व संवर्धन में रात-दिन जुटे हैं रूप सिंह
परी वर्मा, कुल्लू, 29 जनवरी। जनजातीय जिला लाहुल स्पीति के अत्यंत दुर्गम गांव तिंदी के रूप सिंह ठाकुर पारंपरिक लोक संस्कृति के रक्षक हैं। रूप सिंह अपनी विरासत में मिले और सीखे पारंपरिक लोक गीतों और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण और संवर्धन में रात दिन जुटे हुए हैं। वर्ष 1958 में गांव तिन्दी में जन्मे ठाकुर ने अपनी दसवीं तक की शिक्षा बहुत ही आभाव और विकट परिस्थिति में त्रिलोकनाथ स्कूल से उतीर्ण की और उच्च शिक्षा के लिये कुल्लू आ गए। इसी बीच जे बी टी के लिए इनका चयन हुआ और प्रशिक्षण पुरी करने के बाद चंबा जिला के बघेईगढ़ में इनकी पहली पेस्टिंग जे बी टी अध्यापक के तौर पर हुई। उन दिनों चंबा का चुराह क्षेत्र बहुत ही पिछड़ा था, विशेष कर शिक्षा के प्रति लोग विशेष जागरूक नही थे। उन्होंने घर घर जा कर अविभावकों को प्रेरित किया और बच्चों को शिक्षित करने में कोई कोर कसर नही छोड़ी। ठाकुर को उस इलाके में अपनी सेवाएं देने की विशेष रुचि बनी और अपनी सेवाओं को आजीवन इसी क्षेत्र में देने का निश्चय बनाते हुए सेवानिवृत्ति तक चंबा जिले के दूर दराज इलाकों में सेवाएं दी और इसी विभाग में पदोन्नत हो कर वर्ष 2016 में बतौर खण्ड प्राथमिक शिक्षा अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए। शिक्षा के साथ साथ इन्होंने संस्कृति के क्षेत्र में भी अदभुत योगदान दिया।
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अस्सी के दशक में खोला स्टूडियो
अस्सी के दशक में इन्होंने महाकाली कला संगम नामक संस्था का पंजीकरण करवाया जिस में अपने इलाके के सभी नोजवानों को जोड़ने का प्रयास किया। इस संस्था के बैनर तले जिला स्तर से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक के सांस्कृतिक प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लिया और चंबा जिले के दूरदराज गांव बघेईगढ़ को एक अलग पहचान दिलवाई। रूप सिंह ठाकुर यहीं रुकने वाले नही थे उनके मन मे ग्रामीण इलाके में रहते हुए भी कुछ और बेहतर करने की इच्छा रही। उन दिनों वीडियो एलबम का बहुत बड़ा क्रेज था। उन्होंने बघेईगढ़ जैसी जगह में स्टूडियो खोलकर अपनी एलबम तैयार की, आज वे खुद ही एलबम शूट करते है, जिसमे गायकी, निर्देशन और स्क्रिप्ट से लेकर वीडियो एडिटिंग स्वयं करते हैं।
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रूप सिंह के गीत यू-ट्यूब पर मचा रहे धमाल
उन्होंने अपने तीन एलबम निकाल लिए हैं, अब चौथे एलबम की तैयारी में है। आज से करीब 12 वर्ष पूर्व इनकी एक एलबम जो सन्देश प्यार का आई थी जिस में इनका एक गाना, भुजंड नहरे री कामा, धीरे वो रहणा हो ने धूम मचा दी। हर व्याह शादी से लेकर महफ़िल गाडि्याो में यह गाना बजता था और लोग झूम उठते थे। इस एलबम को लोगों ने हाथों हाथ लिया था रूप सिंह ठाकुर कहते है कि वे सिर्फ अपना समृद्ध संस्कृति को बचाने के उद्देश्य से इस काम को कर रहे हैं। अब ता सोशल मीडिया का जमाना है और अब य-ट्यूब पर रुप सिंह के कई गीत धूम मचा रहे हैं।
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सरकार बेहतर कार्य करने वालों को दे प्रोत्साहन
रूप सिंह का कहना है कि सरकार जहां भाषा एवं संस्कृति जैसे विभाग को खोल कर करोड़ों पैसा खर्च करती है ऐसे में इस क्षेत्र में बेहतर कार्य करने वालों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए ताकि पाश्चात्य संस्कृति की ओर तीव्र गति से जा रहे नवयुवकों और नवयुवतियों को अपने समृद्ध संस्कृति की विशेष ध्यान देने पर बल दिया जाए क्योंकि जनजातीय क्षेत्र में अभी भी बुजुर्ग लोगो से सीखने के अमुक भंडार है।

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