कुल्लू के कलाकेंद्र में नाट्योत्सव ‘कुल्लू रंग मेला’ का आगाज

-जिला भाषा अधिकारी ने किया विधिवत शुभारंभ
कमलेश वर्मा(परी),कुल्लू,09 जनवरी। कुल्लू मुख्यालय के ढालपुर सिथत कलाकेंद्र में संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार तथा ऐकिटव मोनाल कल्चरल ऐसोसिएशन के तत्वावधान में 8 से 15 जनवरी तक आयोजित किए जा रहे नाट्योत्सव ‘कुल्लू रंग मेला’ का आगाज़ विख्यात बांग्ला नाटककार मनोज मित्रा के नाटक ‘काक चरित्र’ से हुआ। भाषा एवं संस्कृति विभाग कुल्लू के संयुक्त तत्वावधान में किए जा रहे इस नाट्योत्सव का विधिवत् षुभारम्भ ज़िला भाषा अधिकारी प्रोमिला गुलेरिया ने दीप प्रज्वल्लित करके किया। केहर सिंह ठाकुर द्वारा निर्देशित यह नाटक एक ऐसे लेखक की कहानी है जो अपने आप को वास्तववादी लेखक प्रतिष्िठत होने का दंभ भरता है लोकिन उसके आंगन के एक पेड़ पर घोंसला करके रह रहा एक कौआ उसके इस घमण्ड को चूर चूर करता है। वह उसे एहसास दिलाता है कि वह जो समाज का सच समझ कर लिख रहा है वह केवल सत ही सच है और चकाचोंध से भरा एक ढकोंसला है। लेखक नहीं मानता तो कौआ एक एक करके लेखक की भ्रांतियों को दूर करता है। जैसे लेखक एक कचरा साफ करने वाले को हीरो बनाकर नाटक लिखता है तो कौआ परदा फाष करता है कि वह तो घरों में कचरा साफ करने के बहान घुस कर चोरी करता है, फिर जब एक डॉ को केन्द्र बनाकर लिखना चाहता है तो वह खूनी निकलता है, फिर एक साधु को हीरो बनाकर लिखता है तो वह भी गहनों का चोर निकलता है।
अंततः लेखक कौए को कहता है कि तू मुझे सच्ची खबरें देता रह तो उस पर ही लिखुंगा ताकि सच्चाई लोगों तक लिख कर पहुंचा सकूं। तो कौआ कहता है कि निचली मंज़िल में तुम्हारी बीबी के साथ कोई आदमी है और वह रोज़ आता है जब तुम यहां बैठ कर लिख रहे होते हो, चलो देखें। इस पर लेखक फक हो जाता है। नाटक का भावमय अंत आंसु टपकाते हुए अपनी ही ज़िन्दगी की सच्चाई को लिखते हुए लेखक से होता है। लेखक के रूप में केहर ठाकुर तथा कौए के रूप में दीन दयाल ने अपने सधे हुए सहज अभिनय से नाटक की कहानी को जीवंत बना दिया। जबकि साधु और चेले के रूप में जीवानन्द और श्याम ने दर्शकों को गुदगुदाया और डॉ दास की भूमिका को भूषण देव ने सराहनीय कुटिलता प्रदान की।