दो हजार साल पुराना है चार गढ़ों के गढ़पति शमशरी महादेव का मंदिर” 

-देवों कें देव महादेव का रूप है शमशरी महादेव
-उपमंडल मुख्यालय आनी से 3 किलोमीटर दूर शमशर गांव में स्थित है क्षेत्र के आराध्य देवता शमशरी महादेव का मंदिर 
-आनी क्षेत्र में प्राकृतिक सौंदर्य की है भरमार पर सरकार की नज़र-ए-इनायत की दरकार 
कमलेश वर्मा (परी)
कुल्लू,18 नवबंर। कुल्लू जिले के आनी तहसील मुख्यालय से महज तीन किलोमीटर दूर सैंज-लूहरी-आनी-औट राष्ट्रीय उच्च मार्ग 305 पर स्थित शमशर गांव में चार गढ़ों के गढ़पति शमशरी महादेव का मंदिर” है। प्राचीन महादेव मदिंर परिसर में अंकित इतिहास के अनुसार यह मंदिर दो हजार साल पुराना है, जिसकी पुष्टि हिमाचल के प्रख्यात टांकरी विद्वान खुब राम खुशदिल ने की है। उन्होंने टांकरी में लिखे अनुवाद के हिन्दी विवरण में बताया है कि यह देव परिसर का विक्रमी सम्वत के अनुसार सन 57 में पुनर्निमाण किया गया है,इससे माना जाना है कि यह मदिंर दो हजार साल पुराना है।
शमशरी महादेव की कहानी भी उनके नाम को सार्थक करती है ‘शमशर’ शब्द के सन्धि विच्छेद में शम’ का अर्थ पहाड़ी भाषा में ‘पीपल’ के वृक्ष को कहते हैं,जबकि ‘शर’ यानि ‘सर’ का मतलब ‘तालाब’ होता है। किवदंती के अनुसार शमशर से कुछ दूरी पर प्राचीन गांव कमांद से एक ग्वाला प्रतिदिन अपने मालिक की दुधारू गाय को चराने शमशर गांव में आता था। परन्तु अकसर सांयकाल के समय जब उसका मालिक उसे दुहने की कोशिश करता उसके थनों में दूध न पाकर निराश हो जाता और अपने गवाले नौकर को डांटता। उसका ग्वाला भी इस वाकया से परेशान था कि आखिर दूध कौन निकाल रहा है। एक दिन उसके मालिक को युक्ति सुझी और उसने उस ग्वाले का पीछा किया । तो पाया कि वह गाय एक पीपल के पेड़ के नीचे अपने थनों से दूध इस तरह से डाल रही थी मानों वो शिवलिंग पर दूध चढ़ा रही हो। उसी रात देवता ने उस ग्वाले के मालिक को दर्शन दे कर कहा कि जहां तुम्हारी गाय रोज मुझे दूध चढ़ाती है,उसी ‘शम’ यानि ‘पीपल’ के पेड़ के नीचे मेरा भू-लिंग है उसे वहां से निकालकर पीछे की पहाड़ी पर स्थित गांव में स्थापित करो ।
तत्पश्चात आज भी कमांद गांव से ही भोले नाथ पर गाय का घी सर्वप्रथम चढ़ाया जाता है। इस तरह से शमशर के ‘शम’ शब्द की पुष्टि होती है। वहीं ‘सर’ जब्द यानि तालाब। प्राचीन किवदतीं के अनुसार एक गडरिया अपनी पत्नी के साथ जलेाड़ी दर्रे से कुछ दूरी पर स्थित सरेऊल नामक स्थान पर बसी बुढ़ी नागिन के पास पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना करने गया और इच्छा पूर्ति होने पर उस गडरिये ने मां को सोने की बालियां चढ़ाने का वचन दिया। माता के आशिर्वाद से उसे पुत्र प्राप्त हो गया और अपने वचन के अनुसार गडरिये ने बालियां मां को भेंट भी कर दी और चल पड़ा। लेकिन लालचवश  उसने सोचा कि उसे तो संतान प्राप्ति होनी ही थी फिर बालिंया क्यों चढ़ा डाली? सोचता हुआ गडरिया जब शमाशर के त्रिवेणी संगम पर पहुंचा और उसे प्यास लगी तो बुढी नागिन माता के सरेऊल सर से आ रही नदी के पानी से बने सर यानि तालाब से जैसे ही उसने पानी पीना चाहा तो वहीं बालियां उसके हाथों में आ गई और उसका नवजात बेटा वहीं मर गया। उसी त्रिवेणी का सर यानि तालाब  जो कि आजकल ‘शर’है ‘शम’ के साथ जुडक़र ‘शमशर’ बना। 

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देवता की आज्ञा के बिना संपन्न नहीं होता क्षेत्र का कोई भी कार्य
आज भी देवता की आज्ञा के बिना क्षेत्र में कोई भी कार्य सम्पन नहीं होता। तीन या सात साल जिसे सतराला भी कहा जाता है बाद जब शमशरी महादेव फेरों पर निकलते हैं तो क्षेत्र में कोई भी शुभ कार्य अमल में नहीं लाया जाता। देवता के हर धार्मिक अनुष्ठान के दौरान इसके कार्यक्षेत्र या दायरे में आने वाले हर घर से कम से कम एक व्यक्ति को प्रतिदिन कार्य में सहयोग देना ही होता है। 

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आनी क्षेत्र में प्राकृतिक सौंदर्य की है भरमार पर सरकार की नज़र-ए-इनायत की दरकार
पूरी आनी घाटी प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब है। वहीं, पर्यटन व धार्मिक दृष्टि से भी इस क्षेत्र की एक अलग ही पहचान है जिससे पर्यटक इस घाटी की तरफ रुख कर सकते हैं। लेकिन कई अनछुए पर्यटन स्थल आज भी सरकार की नज़र-ए-इनायत के लिए तरस रहे हैं। अगर इन स्थलों को निखारा जाए तो वह दिन दूर नहीं जब यहां के पर्यटन व धार्मिक स्थलों में देश व विदेश के सैलानियों का जमाबड़ा लगे और यहाँ के पर्यटन को चार चांद लगेंगे।

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